Diya Jethwani

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धारावाहिक..... ये दूरियाँ....अंतिम भाग

अब तक आपने पढ़ा की कैसे मैं चीन लौटने के लिए तड़प रहीं थीं...। भारत में रहते हुए मैंने कैसे अपनो के साथ अपना वक्त बिताया..। 

इन्हीं कुछ लोगों में मेरी ननदो के अलावा मेरे जेठ, जेठानी और देवरानी भी आते हैं..। 

जेठानी - देवरानी :- शादी के बाद मैं कुछ वक्त ही ससुराल रहीं थीं... लेकिन इन कुछ महीनों में मेरी देवरानी और मेरी आपस में कभी कुछ खास नही बनी..। पर कोरोना काल में उसने मेरा भरपूर साथ दिया..। मेरे जेठानी और देवरानी ने मुझे कभी अकेला पन महसूस नहीं होने दिया..। साथ में मंदिरों और गुरुद्वारों में जाना... आस पास बगीचों में घुमने जाना.. कभी कभी शापिंग पर चले जाना... देर रात एक दूसरे से बातें करते रहना...। उस वक्त हम सभी ने मिलकर ये वक्त बहुत स्नेह से निकाला...। नायरा तो वैसे ही मेरे जेठ की जान थीं...। वो नायरा के साथ कई तरह के खेल खेलते थे...। किसी ने सही ही कहा हैं की जो वक्त हम बिता रहें हैं... एक दिन वो याद बन ही जाता हैं... उन सभी के साथ बिताएं वो पल मेरे लिए कभी ना भूलने वाली याद हैं...। 


मायका - ननिहाल - बड़ी बहन का घर:- सब कुछ होने के बाद भी एक डर तो उस वक्त सभी के दिलों में बैठ गया था..। मैं भी कभी कभी अभि के बारे में सोच कर बहुत ज्यादा डर जाती थीं..। कभी कभी मन बहुत खराब होता था तो मैं अपने ननिहाल चलीं जाती थीं..। वहाँ सभी मुझे इतना प्यार देते थे की कुछ समय के लिए मैं अपना डिप्रेशन भी भूल जाती थीं...। कभी बड़ी बहन तो कभी छोटी बहन मंजू.... कोई ना कोई मुझसे मिलने आता रहता था...। मंजू के बेटे के साथ नायरा की बहुत जमती थीं..। परिवार क्या होता हैं... ओर उनका क्या किरदार होता हैं... वो मुझे उस वक्त समझ में आ गया था..। मायके में मेरे पेरेंट्स हो, भाई हो या मेरी बहनें सभी ने उस मुश्किल दौर में मुझे बहुत सहारा दिया...। मुझे किसी ने भी कभी महसूस नहीं होने दिया की मैं अकेली हूँ...। सिंगल पेरेंट्स होने के बाद भी मुझे कभी कोई तकलीफ नहीं हुई...। 

बड़े ताऊ की लड़की :- किसी ने बड़ी खुब बात कहीं हैं की खुन खुन होता हैं...। मैं सब की बात करुं और उसकी नहीं ये शायद मैं खुद के साथ गलत करुंगी... क्योंकि कोरोना के वक्त जब कोई अपना भी पास आने से डरता था तब वो हर वक़्त साये की तरह मेरे साथ रहीं थीं..। वो मेरे ससुराल के पास ही रहतीं थीं... एक ही सोसाइटी में.. लेकिन उसने उस मुश्किल वक्त में मेरा बहुत हौसला बढ़ाया..। 

स्नेहल :- स्नेहल मेरे साथ मेरे आफिस में काम करता था..। तब से ही वो मेरा खास दोस्त बन गया था..। उसकी बातों से जो प्रोत्साहन मुझे मिलता था...वो किसी किताब या विडियो से भी नहीं मिलता था..। वैसे तो वो सयुंक्त परिवार में रहता हैं.. इसलिए उसके घर मेरा जाना बहुत कम ही होता था... लेकिन मुझे कभी भी कोई समस्या होतीं तो स्नेहल उसे बखुबी संभालता भी था और सुलझाता भी था...। 

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कहने को सब कुछ था... अपनों का प्यार... दोस्तों का साथ... लेकिन पता नहीं क्यूँ एक पराया पन तो महसूस होता ही था..। जब कभी कोई ये कहता था की..." अभी तक यहीं हैं... गई नहीं.. "........ तब दिल बहुत दुखता था...। 
चाइना मे भले ही किराए का घर था लेकिन सुकून तो मुझे वहीं आता था...। 


दिन पर दिन और महीनों पर महीनें बितते गए...। आखिर कार अंजली के घर जब मुझे वीसा पास होने की खबर मिलीं तो मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा..। 

अगस्त को वीसा आया और मैं छह सितम्बर को दिल्ली के लिए निकलीं...। दिल्ली से मुझे कोलंबो (श्रीलंका) जाना था.. । कोलंबो पहुंचकर हमें तीन दिन वहां रुकना था..। 9 सितम्बर को चाइना की फ्लाइट थीं..। नौ सितम्बर को बर्गर खाकर हम फ्लाइट मे चढ़े...। 10 सितम्बर सवेरे को फ्लाइट पहुंची....। फ्लाइट में खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी.... कोविड की वजह से...। उतरने के बाद भी आसपास सब कुछ बंद था... खाने पीने को कुछ भी नहीं था...। हम दोपहर को तीन बजे होटल पहुंचे...। तब तक कुछ भी नहीं खाया था...। होटल पहुंचने पर जब कुछ खाने को कहा तो .....हमसे कहा गया की लंच टाइम ओवर हो गया हैं...। इतने लंबे वक्त तक सिर्फ बिस्किट और थेपले (गुजराती डिश) खाकर ही काम चला रहें थे...। 
होटल में हमें तीन दिन के लिए क्वारंटीन रखा गया...। रात को भी खाना दिया गया तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था...। एक तो उस होटल में ज्यादातर नोनवेज ही दिया जाता था....जो मैं बिल्कुल नहीं खाती थीं....दूसरा अपने देश तो आ गई थीं.... पर अपने घर अभी भी नहीं पहुंची थीं...। 
चाइना मे लोग हमसे ज्यादा बात भी नहीं कर रहें थे...। उन सभी को लग रहा था की हम कोरोना पोजिटिव हैं...। 
होटल से अपने घर हमें एंबुलेंस में ले जाया गया...। चूंकि मैं पूरे दो साल और दस महीनों बाद अपने घर जा रहीं थीं.... इस दरमियान अभि ने दूसरी सोसाइटी में घर शिफ्ट कर लिया था...। 
एंबुलेंस उस पत्ते पर मुझे लेकर तो पहुंची लेकिन सोसाइटी के बाहर पहुंचने पर भी मैं ऊतर नहीं रहीं थीं...। जब तक की अभि से कंफर्म नहीं मिला...। 
दो साल बाद अपनी नई सोसाइटी में प्रवेश किया तो अभि भी सामने से हमें लेने आ रहा था....। 
मैं लब्जो में बता ही नहीं सकतीं की उस वक्त दिल को कितनी राहत मिली....। 
अभि को देखते ही आंखों से आंसू खुद ब खुद बहनें लगे....। अभि मेरे नजदीक आया और उसने मुझे और नायरा को सीने से लगा लिया...। कुछ पल की खामोशी.... सब कुछ बयां कर रहीं थीं...। अभि ने भी बहुत कोशिश की पर आंसू उसकी आंखों से भी छलक ही पड़े....। फाइनली हम फिर से एक साथ थे....।


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आज मैं अभि और नायरा सब साथ थे...। कमी थी तो अंजली की.....। अंजली वापस कभी चाइना लौटी ही नहीं...। वो कोरोना के बाद भारत में रहने लगी...। आज भी उसकी बहुत याद आतीं हैं...। नायरा भी आराध्या को बहुत मिस करतीं हैं...। उससे फोन पर तो बात होतीं रहतीं हैं... लेकिन उसके साथ अंजान देश में बिताए पल मेरे लिए कभी ना भूलने वाले पल थे...। मेरी प्रेगनेंसी में उसने एक माँ की तरह जो मेरा ख्याल रखा.... नायरा को जो प्यार दिया.... वो अविस्मरणीय था..। 

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2 साल 10 महीने..... इतना लंबा वक्त मैंने अभिजित के बिना कैसे निकाला.... यह मेरे लिए लिख पाना बहुत मुश्किल हैं..। प्यार में जब दूरियाँ आ जाती हैं.... जब हम चाहकर भी मिल नहीं सकते हैं तो उस वक्त दिल में जो दर्द होता हैं वो लब्जो में लिखा ही नहीं जा सकता...। 
हर दिन.... हर पल अब बस ऊपरवाले से ये ही प्रार्थना करतीं हूँ की हमें अब कभी अलग ना करें... कभी एक दूसरे से जुदा ना करे.... हमारे बीच अब कभी कोई दूरी ना आए...। 

बाहर के देशों में रहने वाले लोगों को अक्सर भारत में अपने लोगों से यह जरूर सुनना पड़ता हैं की तुम लोगो को तो बाहर आराम होता हैं.... सारा काम तो बाईं करतीं हैं.... तुम्हारी लाइफ़ जबरदस्त हैं..। 

लेकिन सच इसके बिलकुल विपरीत होता हैं...। हम लोगो के लिए सबसे मुश्किल काम अगर कुछ होता हैं तो वो हैं बाहर रहकर भी अपने देश की पहचान को बनाए रखना..। अपने बच्चों को अपने देश के कल्चर सीखाना.... अपने देश के संस्कार देना...। अपने देश से दूर रहना हम लोगो का शौक नही मजबूरी होती हैं....। हम भारतीय हैं.... हम दुनिया के चाहे जिस भी कोने में रहें.... अपनी संस्कृति और अपने देश को कभी नहीं भूल सकते...। 

ये सिर्फ कहानी नही मेरी जिंदगी की वो सच्चाई हैं... जिसे मैंने जीया हैं.... इससे बहुत कुछ सीखा भी हैं.... बहुत कुछ पाया भी हैं...बहुत कुछ खोया भी हैं..। उम्मीद करती हूँ आप सभी को यह पसंद आएगी....ओर इस सच्चाई में शामिल मेरी भावनाओं को समझने की कोशिश करेंगे... । 

जाते जाते सिर्फ इतना कहूंगी.... 

वो पल में बीते साल लिखूँ... 
या सदियों लंबी रात लिखूँ... ।। 
मैं तुमको अपने पास लिखूँ.... 
या दूरी का अहसास लिखूँ...।। 







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3 Comments

वानी

16-Jun-2023 09:17 PM

Bahut khoob

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Aliya khan

14-Jun-2023 01:29 AM

सही कहा अपने एहसासो को शब्दों का लिबास पहनना bahut कठिन हो जाता है हर शब्द छोटा लगता है ये तो बस एक फीलिंग्स है जिस को समझा पाना या दिखा पाना मुश्किल है

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Gunjan Kamal

13-Jun-2023 04:24 PM

दूर के ढोल सुहावने लगते हैं, हम में से कुछ के जीवन में ऐसा पल अवश्य आता है जब उन्हें इस कहावत से रू-ब-रू होना पड़ता है। यथार्थ चित्रण 👏👌😊

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